Wednesday, January 29, 2020

छत्तीसगढ़ की ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ: प्रदेश में आर्थिक असमानता की समस्या और समाधान 

दावोस चलो! 
आर्जेंटीना के सूरदास कवि जॉर्ज लूई बोर्जेस ने लिखा है कि अगर किसी चीज़ को बारीकी से समझना है तो उसे तह तक जाकर देखना होगा- उस स्थान पर जिसे वे ‘अल अलेफ’ कहते हैं। छत्तीसगढ़ की वर्तमान दशा और दिशा को समझने के लिए हमें स्विट्ज़रलैंड के छोटे से शहर दावोस जाना पड़ेगा। दुनिया भर के नेता, उद्योगपति, समाज सेवी और बुद्धिजीवी वहाँ वर्ल्ड इकनॉमिक फ़ोरम की पचासवीं वर्षगाँठ पर इक्कठे हैं। उनका मनाना है कि दुनिया की अर्थ व्यवस्था पर तीन प्रकार के ख़तरे मंडरा रहे हैं: आर्थिक असमानता की बढ़ती खाई; पर्यावरण परिवर्तन; और भारत के आर्थिक पतन के संकेत। इन तीनों का छत्तीसगढ़ पर ख़ासा प्रभाव देखने को मिलता है। आज की कॉलम में मैं पहले ख़तरे आर्थिक असमानता के छत्तीसगढ़ पर प्रभाव- और समाधान- पर चिंतन करूँगा। 

छत्तीसगढ़ की ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ 
Oxfam द्वारा जारी एक शोध के अनुसार भारत के 63 सबसे अमीर व्यक्तियों की सम्पत्ति 2018-19 के भारत के ₹24,42,200 करोड़ के वार्षिक बजट से भी अधिक है: मतलब देश के मात्र 1% अमीरों के पास सबसे गरीब 953 करोड़ लोगों से ज़्यादा धन है। छत्तीसगढ़ में स्थिति इस से भी कहीं ज़्यादा भयावह है। प्रदेश से सबसे अधिक कमाने वाले मात्र 5 सबसे अमीर औद्योगिक घरानों की सम्पत्ति छत्तीसगढ़ के 2019-20 के ₹1,25,102 करोड़ के वार्षिक बजट से 10 गुणा- ₹10,46,500 करोड़- है जबकि देश में सबसे ज़्यादा 48% लोग हमारे प्रदेश में ग़रीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। लेकिन देश और प्रदेश की समानताएँ यहाँ समाप्त हो जाती है: 

छत्तीसगढ़ की टॉप 5 कम्पनियाँ: 
1. लाफ़ार्जहोलसिम, जोना, स्विट्ज़रलैंड (छत्तीसगढ़ में लाफ़ार्ज, सोनाडीह; लाफ़ार्ज, रसेड़ा; लाफ़ार्ज, एरसमेटा; ACC सिमेंट, जामुल)- ₹ 3,25,000 करोड़ 
2. वेदांता समूह, लंदन (छत्तीसगढ़ में बालको, कोरबा)- ₹ 2,92,500 करोड़ 
3. आदित्य बिरला समूह, मुंबई (छत्तीसगढ़ में अल्ट्राटेक, हिरमी; अल्ट्राटेक, रवान) - ₹ 2,66,500 करोड़ 
4. जिंदल समूह- JSPL नई दिल्ली और JSW मुंबई (छत्तीसगढ़ में JSPL, रायगढ़; JSPL, तमनार; जिंदल इंडस्ट्रीयल पार्क, पूँजीपथरा; JSPL, मंदिर हसौद; JSW, रायगढ़ और मोनेट इस्पात एंड पॉवर, मंदिर हसौद)- ₹ 1,17,000 करोड़ 
5. एस्सार समूह, मुंबई (छत्तीसगढ़ में एस्सार स्टील, बैलाडिला) - ₹ 45,500 करोड़ 

टोटल: ₹ 10,46,500 करोड़ (स्रोत: फ़ोर्ब्ज़, एकनॉमिक टाइम्ज़) 

उपरोक्त सूची से स्पष्ट होगा कि जहाँ भारत के 63 सबसे अमीर कम्पनियों के व्यावसायिक मुख्यालय और अधिकांश धन भारत की अर्थव्यवस्था में ही है; वहीं छत्तीसगढ़ की 5 सबसे अमीर कम्पनियों में से एक का भी व्यावसायिक मुख्यालय और उनका प्रदेश से कमाया धन छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं है। जबकि इन सभी औद्योगिक घरानों को उनकी 55-75% सम्पत्ति छत्तीसगढ़ की खनिज सम्पदा के दोहन से ही मिलती है। ये 5 सबसे अमीर कम्पनियाँ आज छत्तीसगढ़ में वही भूमिका अदा कर रही हैं जो 1765 से 1857 के बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (BEIC) ने भारत में करी थी- और जिसे इतिहासकार विल्यम डार्लिंपल ने अपनी पुस्तक ‘द ऐनारकी (अराजकता): ईस्ट इंडिया कम्पनी, कॉर्पोरेट हिंसा और एक साम्राज्य की लूट’ में BEIC के गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव और मुग़ल सम्राट शाह आलम की जीवनी के माध्यम से बेहद मानवीय, संतुलित और संवेदनशील तरीक़े से वर्णित किया है। 

मेरा घर कहाँ है? 
मुंबई के उद्योगपति कुमारमंगलम बिरला की हिरमी और रवान (बलौदाबाज़ार) में अल्ट्राटेक सिमेंट कारख़ाने हैं। ये देश के सबसे बड़े सिमेंट प्लांटों में से दो हैं। सिमेंट बनाने के लिए क्लिंकर (बलौदा), कोयला (कोरबा) और पानी (महानदी-शिवनाथ) बिरला छत्तीसगढ़ से लेते है; लेकिन सारे टैक्स मुंबई, जहां उनका कॉर्पोरेट मुख्यालय है, में पटाते है क्योंकि GST बनाने (उत्पादन) पर नहीं बल्कि बेचने (उपभोग) पर लगता है। छत्तीसगढ़ से केवल माल निकलता है लेकिन बिकता मुंबई में है- इसलिए फ़ायदा भी केवल मुंबई को ही मिलता है। इसके बदले में छत्तीसगढ़ के दोनों राष्ट्रीय दलों के खाते में बिरला औपचारिक रूप से सबसे बड़े दानदाता बन जाते हैं (पिछले 15 सालों में कुल दान: ₹3000 करोड़, स्रोत: ADR) और छत्तीसगढ़ की जनता के खाते में दोहन, प्रदूषण और शोषण ही आते हैं। 

2020-21 में खनिज सम्पदा से रॉयल्टी, ज़िला खनिज निधि (DMF) और CSR मद- जो कि उसके कुल मूल्य का 5% भी नहीं है- को छोड़ शेष कोई भी टैक्स का लाभ छत्तीसगढ़ को नहीं मिलेगा। इस घाटे की भारत के संप्रभु निधि से पूर्ति करने से केंद्र सरकार ने पिछले महीने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, छत्तीसगढ़ ने 2018-19 के बजट में ₹4,445 करोड़ के राजस्व अधिशेष का अनुमान लगाया था। ये अधिशेष 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार ₹6,342 करोड़ के राजस्व घाटे में बदल गया। मतलब 2018-19 में सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ की जनता को खनिज सम्पदा से मिलने वाले राजस्व में ₹10,787 करोड़ का नुक़सान हुआ था। 2020-21 में ये घाटा और विकराल रूप धारण कर चुका होगा (अनुमानित घाटा: ₹24,000+ करोड़)। केंद्र सरकार और कॉर्पोरेट इंडिया की इस दुगनी मार से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का उभर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण है। 

इसके लिए आख़िर दोषी कौन है? राज्य में संचालित ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ न केवल छत्तीसगढ़ को उसके अधिकार के GST से वंचित कर रहे है बल्कि विगत 3 वर्षों में ठेके प्रथा और आउट्सॉर्सिंग के माध्यम से रोज़गार में 62.83% कटौती कर चुके हैं। ये अक्षम्य है। 

Oxfam के उपरोक्त शोध के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर इन पाँच ईस्ट इंडिया कम्पनियों के सम्पत्ति करों को मात्र 0.5% (आधा फ़ीसदी) बढ़ा दिया जाता है, तो स्वास्थ और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों की देखभाल के लिए अगले 10 वर्षों में छत्तीसगढ़ में 11,70,000 (11 लाख 70 हज़ार) नई नौकरियाँ निकाली जा सकती हैं। लेकिन सरकारें अमीरों की सम्पत्ति पर टैक्स कम करके ठीक इसका उल्टा कर रहीं है। 

चड्डी का नाम गाड़ी... 
सरकार का मानना है कि छत्तीसगढ़ में आर्थिक मंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मैं उनकी बात से असहमत हूँ। मुख्यमंत्री अपने उद्योगपति-मित्रों के सामने छत्तीसगढ़ में वाहनों के विक्रय के आँकड़े प्रस्तुत करते हैं। इस आर्थिक अजूबे के मात्र दो कारण हैं: पहला, पड़ोसी राज्यों की तरह वाहनों के विक्रय पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अतिरिक्त कर लागू नहीं किया और दूसरा, पुरानी पद्धति से निर्मित वाहनों (जिनके विक्रय को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण के कारण बड़े-बड़े शहरों में रोक दिया है) के विक्रय पर भी कोई ख़ासा रोक नहीं लगाई। लेकिन इसका कदापि ये मतलब नहीं निकाला जा सकता कि छत्तीसगढ़ में सब कुछ बढ़िया चल रहा है। 

मुख्यमंत्री के वाहनों के विक्रय के आँकड़े के सामने मैं चड्डियों और बनियानों के विक्रय के आँकड़े रखूँगा। अमरीकी केंद्रीय बैंक के कई दशकों तक प्रमुख रहे ऐलन ग्रीन्स्पैन ने एक बहुत फ़तह की बात कही है। आर्थिक मंदी के संकेत के लिए GDP, रोज़गार दर, इन्फ़्लेशन, पर कैपिटा इंकम, पर्चसिंग पावर पैरिटी इत्यादि आर्थिक सूचकांकों की जगह वे रोज़ देखते थे कि उपभोगताओं ने चड्डी और बनियान ख़रीदने में कितना खर्च किया क्योंकि कठिन समय में लोग बाक़ी चीजों में कटौती करने से पहले चड्डी-बनियान ख़रीदना बंद कर देते हैं क्योंकि ये रोज़मर्रा की ऐसी वस्तुएँ हैं जो न केवल सस्ती हैं बल्कि दूसरों को दिखाई भी नहीं देतीं। निश्चित रूप से किसी भी अर्थव्यवस्था का बेहतर दर्पण वाहनों से ज़्यादा चड्डी-बनियान की ख़रीदी-बिक्री है। 

CMAI (क्लोध्ज़ मैनुफच्तुरेर्स असोसीएशन ओफ़ इंडिया) के सबसे ताजे आँकड़ों के अनुसार जहां पूरे विश्व में पिछले 4 महीने में भारत में सबसे अधिक (50%) चड्डी-बनियान की बिक्री में गिरावट हुई है, वहीं पूरे भारत में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (75%) चड्डी-बनियान की बिक्री में गिरावट हुई है। गाड़ी ख़रीदने वालों की बात मैं नहीं करता लेकिन चड्डी-बनियान पहनने वाले लोग अपने पेट को लेकर बेहद चिंतित हैं। 

गाजर और छड़ी 
अगर हम ठोस-और कठिन- कदम नहीं लेंगे, तो छत्तीसगढ़ को अपरिवर्तनीय रूप से एक गुलाम राज्य में बदलने से रोका नहीं जा सकता है। कम्पनियों को केवल हिटलरशाही से प्रेरित नहीं किया जाना चाहिए। उनको बेहतर सौदे देकर लुभाया भी जा सकता है। इसीलिए गाजर और छड़ी के बिना, हितधारक-पूंजीवाद हमेशा एक सनक और एक तुष्टिकरण तक ही सीमित रहेगा जबकि उसमें गहरे परिवर्तन लाने की आपार क्षमता निहित है। इस सम्बंध में मैं अपने दोनों सामाजिक-आर्थिक प्रेरणास्रोतों- फ़्रेड्रिक ऑगस्ट वॉन हायेक (सार: असमानता तभी ख़त्म होगी जब राज्य और समाज, दोनों मार्केट को स्वतंत्र छोड़ दे और अपना संतुलन खुद क़ायम करने दे) और टॉमस पिकेट्टी (सार: असमानता दूर करने के लिए राज्य अमीरों से 80-90% सम्पत्ति कर वसूले)- के विरोधाभासी विचारों के बीच की खाई की भरपाई करने की कोशिश भी कर रहा हूँ। 

इस कॉलम के माध्यम से मैं राज्य सरकार को 4 कदम उठाने का प्रस्ताव दे रहा हूँ: 
1. खनिज सम्पदा का टैक्स छत्तीसगढ़ को ही मिले, इसके लिए राज्य सरकार आगामी बजट सत्र में 3 बिंदुओं का क़ानून पारित करे कि 
a. सभी खनिज पदार्थों को कच्चा माल (रा-मटीरीयल) के रूप में प्रदेश से बाहर ले जाने में पूर्णत प्रतिबंध लगाया जाएगा; 
b. प्रदेश में कार्यरत सभी खनिज और खनिज-आधारित ईस्ट इंडिया कम्पनियों को अपना पंजीयन छत्तीसगढ़ में ही कराना पड़ेगा और 
 c. 90% स्थानीय लोगों को सीधे-रोज़गार और 70% स्थानीय इकाइयों को व्यावसायिक ठेके देने पड़ेंगे। इन प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो, इसे सरकार और समाज दोनों को मिलकर सुनिश्चित करना पड़ेगा। 

2. इन तीन शर्तों के बदले में छत्तीसगढ़ को SGST (जो कि GST का आधा होता है) को 2020-21 से आधा कर देना चाहिए ताकि बाहर की कम्पनियाँ भी छत्तीसगढ़ में अपना पंजीयन करा के यहीं अपने SGST का भुगतान करे। एक साल बाद, जिस अनुपात में राज्य में पंजीकृत कम्पनियों- और उपभोग- में वृद्धि होती है, उसी अनुपात में SGST को भी और कम करते जाना चाहिए। कर-राजस्व का जो नुक़सान हमें कर की दरों को कम करने से होगा, उसकी दुगनी भरपायी छत्तीसगढ़ में कर के स्रोतों (टैक्स-बेस) को बढ़ाकर की जा सकती है। ऐसा सिंगापुर, दुबई और टेक्सस कर चुके हैं। 

3. स्टैग्फ़्लेशन से बचने- उत्पादन को बढ़ाने और महंगाई को क़ाबू करने- के लिए राज्य सरकार को अपने तीनों प्रमुख करों- पेट्रोल और डीज़ल पर कर, बिजली पर कर और आबकारी कर- को भी वर्तमान प्रचलित दरों से सीधे-सीधे आधा कर देना चाहिए। इस से और राज्यों की अपेक्षा छत्तीसगढ़ में बिजली समेत हर वस्तु की क़ीमत आधी हो जाएगी। इस से प्रदेश में उपभोग (बिक्री) में भारी वृद्धि होगी और उत्पादन और उपभोग के बीच संतुलन स्थापित हो सकेगा। 

4. साथ ही, छत्तीसगढ़ को अन्य उत्पादन-आधारित राज्यों के साथ एक पृथक आर्थिक समूह बनाकर (सुझाव: प्रडूसर स्टेट्स ओफ़ इंडिया) केंद्र को GST घाटे की भरपाई के लिए राजनीतिक रूप से बाध्य करना होगा। अमित जोगी लेखक छत्तीसगढ़ की एकमात्र मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के अध्यक्ष हैं।

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