Thursday, February 19, 2009

Film: स्लमदौग मिलियनैर की सफलता का हमारे लिए अर्थ?

Click here to read the English translation of this post. The translation was done using Google Translate.
मेरे जैसे हजारों-लाखों लोगों जिनके लिए व्यावसायिक हिंदी सिनेमा रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक प्रधान आहार बन गया है, उनके लिए स्लमदौग मिलियनैर की कहानी के बारे में विशेष रूप से नया कुछ भी नहीं है: भारतीय दर्शकों की फीकी प्रतिक्रिया की तुलना जब इस फ़िल्म को अन्य जगह मिली मनमौजी प्रशंसा से करते हैं, तो यह बात बेहद स्पष्ट हो जाती है. इस फ़िल्म में दर्शित गरीबी से अमीरी के सफर की कहानी एक तरह से भारत के खुद के उस युग की सिनेमाई-गाथा है, जिसमें जमाल, सलीम और लतिका के संयुक्त जीवन का खुलासा होता है. कई मायनों में यह हम सभी भारत वासियों की कहानी भी है जो यहाँ पिछले दो दशकों के तूफानी दौर में पले-बड़े हैं.

इसकी अभूतपूर्व
"सभी नियमों को तोड़ देने वाली सफलता" (जैसा कि लंबे समय से रहे फिल्म समीक्षक, रोजर ईबर्ट, इस फ़िल्म पर अपने लेख में कहते हैं) के लिए मैं वर्त्तमान दुनिया की अचानक हुई दयनीय हालत को उतना ही नहीं बल्कि शायद उस से भी ज्यादा जिम्मेदार मानता हूँ जितना कि इस फ़िल्म के हर्षजनक आंतरिक-आकर्षण को: आख़िर, मंदी के इस दौर का जय-हो के अद्भुत स्वरों में लिपटी बेधड़क आशा की एक स्वस्थ ताज़ी खुराक से ज्यादा बेहतर इलाज और हो भी क्या सकता है? इस वर्ष के ऑस्कर में अन्य सभी 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार' के लिए नामांकित फिल्में हमारे आसपास- और भीतर- की निराशा को प्रतिबिंबित करती हैं; इस एक फ़िल्म को छोड़, इनमें से कोई भी हालात से बाहर निकलने का रास्ता नहीं दर्शाती; हालांकि-या फिर ये कहें कि विशेषकर जब- ये रास्ता एक अकल्पनीय प्राणपोषक सुखद-अंत (Happy Ending) के रूप में ही क्यों न प्रस्तुत किया गया हो! स्लमदौग मिलियनैर की अप्रत्याशित सफलता का निश्चित रूप से यही सबसे महत्वपूर्ण राज़ है.

मैं आपसे इस एक विशेष दृश्य के साथ विदा लेता हूँ: जब जमाल मुंबई के साँप-नुमा यातायात से जून्झता हुआ उस आखिरी दो करोड़ रुपए के सवाल का जवाब देने के लिए जाता रहता है, तब एक बुढ़िया-भिखारिन उसकी कार की खिड़की पर एकाएक खटखटाती है. पहले तो उसे लगता है कि वो उस से पैसे माँगने आई है, इसलिए उसे कोई तव्वजू नहीं देता; बाद में अहसास होता है कि वह उसके पैसे नहीं चाहती; इसके ठीक विपरीत, वो सिर्फ़ ये चाहती है कि जमाल सारे पैसे ख़ुद जीत ले. "बेटा," वो जाते हुए जमाल को मुस्कराते हुए कहती है, "जीत के आना." जमाल की जीत आख़िर उसकी जीत भी तो होगी. ठीक वैसे जैसे स्लमदौग मिलियनैर की ऑस्कर की रात की जीत भारत की जीत होगी- और साथ ही दुनिया भर के सभी दिलदार आशावादी-उपेक्षितों की भी.

8 comments (टिप्पणी):

Anonymous said...

bahut achha likha hai aapne..

Javed Ali Zaidi said...

Yeh thik kaha aapne ki uss film ko aaj ke recession ke is daur main saab apni kahani samjh rahen hain.
Isse pehle bhi aaise filmain bani hai jo is taranh ka sandesh deti thi magar jaab kehte hain na hum khush to koi roye to roye taab us waqt kisi ko aaise film pasand nahin aati thi magar aaj ke daur main woh saabhi ko pasand aa rahin hai wajah ek hi hai saabhi pareshan aur hum bhi pareshan. Chaliye dua kare ki ushe oscar miljaye aur yeh recession ke daur khatam ho.

Anonymous said...

टॉफलर की पुस्तक (संभवतः फ्यूचर शॉक) में एक वाक्य है- पृथ्वी पर अंतिम मनुष्य जब अपने कमरे में था, तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई.

Aslam
www.raviwar.com

Avinash Thakur said...

As the curtain raiser to Oscar begins...in Western world........Slumdog is known as British movie..........shot in backdrop of Indian slums........Therefore lets not put much glory to its victory. Its clearly mentioned as British Movie produced & directed. Moreover BAFTA nomination ceremony if watched propely does not appeal to anything called Indianess...Indeed its great cinema.......I fail to understand why are we so jubilious..
http://news.bbc.co.uk/1/hi/entertainment/oscars/7904567.stm

Regards
Avinash Thakur

Anonymous said...

अमीत जी ,
नमस्कार

प्रथमतः देरी से जवाब देने के लिये मुझे माफ़ किजीयेगा !! काफ़ी दिनो से नेट से दुर था !!
आपको पढकर हमेशा अच्छा लगता है ये लिंक भी जरुर पढुंगा !! आपकी हिन्दी भी आप की अंग्रेजी की तरह माशा-अल्लाह हो रही है !!

अनेक शुभकामनाओं के साथ ...

दीपक

धर्मेन्द्र सिंह सेंगर said...

hi amit holi ki badhai 1 sawal hai aapse kya aap lok sabha election lad rahe hai

Unknown said...

sla. .mile.. par aapki ray se film dekhne ka ak naya najariya mila.


aaki lekhani mere bhawnao ko gahrayi se chhuti hai. kahi na kahi khud ko aap se kafi nikat se juda pata hun..
ritesh durg
94076 58285

sonia shrivastava said...
This comment has been removed by the author.

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