Saturday, March 08, 2008

Comeback: केशकाल में दुकाल

One of the posts I had published on this Blog last month was stolen: in total disregard of my request not to reprint it without taking my prior consent, Sunil Maheshwari, the editor a local Raipur-based eveninger, printed it on the front page of the “Daily Chhattisgarh” under the headline “Amit ne Internet pe virodhiyon ke saath hisaab chukta kiya” (Amit settles scores with opponents on Internet). Thereafter, it was free for all: other newspapers- including three columnists and at least one cartoonist- were quick to follow in Mr. Maheshwari’s footsteps; there was even some talk of my so-called ‘opponents’ posting their own counter-reply on the Internet (this, however, is yet to materialize).

His explanation, given to a mutual friend, was that “you can’t put posters all over town and expect people not to talk about it” makes some sense: the internet, after all, is public domain; nothing on it is, technically speaking, private. Intellectual Property Rights, in praxis, don’t account for much, I guess, especially in a world inhabited by the likes of Mr. Maheshwari. My grudge, if one can call it that, was not that the post was published; but with who published it, and the somewhat myopic perspective given to that publication. Surely, a writer ought to have control over that much at least.

In any case, I think removing the post from the Blog wasn’t right: it has, I believe, sent the wrong message; that writers can be hounded into submission by a self-proclaimed dictatorship of pseudo-intellectuals, or that intra-party democracy is dead in the Congress party. Neither of these assumptions is true.

Consequently, “केशकाल में दुकाल ” makes its comeback on ½ Freedoms! I am sorry it was removed in the first place.

AJ


केशकाल की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस में चर्चा और चिंतन, दोनों की आवश्यकता है.

केशकाल हमारी लगातार हुई तीसरी हार है. इसके ठीक पहले, मालखरोदा और खैरागढ़ में हुए उप-चुनावों में भी हम बुरी तरह हार चुके हैं. हार इसलिए और खली क्योंकि इतिहास में पहली बार यहाँ भाजपा का परचम लहराया. जो उत्साह कांग्रेसियों में कोटा और राजनान्द्गांव के बाद देखने को मिलता था, वो केशकाल के बाद निराशा और निराशा से ज्यादा, नाराज़गी, में बदलता नज़र आता है.

मयनपाट से एक कांग्रेसी साथी ने देर रात कल फोन किया. वो पीये हुए थे, इसलिए बेहिचक अपनी मन की बात बोल गए. कहा कि पार्टी को महंत-कर्मा बंधुओं ने बेच दिया; फिर बोल पड़े, हाथी पे चढ़ जाओ. मैंने उनसे कहा कि भाई, कम से कम ये तो सोचो की किससे किस के बारे में बात कर रहे हो. इसके पहले कि वो और कुछ बोलते, मैंने फोन काट दिया. आज के अखबारों में पढ़ा कि कांग्रेसी जगह-जगह अपने प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का पुतला दहन कर रहे हैं. एक को फोन पर मैंने डांटा. ऐसा करना भला क्या शोभा देता है? वो उल्टा मुझसे बोला, क्या रमन सिंह से पैसे खाकर पार्टी को हरवाना शोभा देता है?

इस तरह की बातें तूल पकड़ने लगी हैं; बेहतर होगा कि उनका निराकरण पार्टी के अन्दर, जल्द से जल्द, हो. केशकाल प्रकरण का विश्लेषण करें, तो कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने उभर कर आती हैं.

कितना मुनासिब था एक ऐसे प्रत्याशी को टिकट देना जो खुद चुनाव लड़ने में रूचि नहीं रखता हो? श्री गोविन्द लाल वोरा के अखबार, अमृत सन्देश, में आज एक अजीब सी खबर छपी है. इसमे श्री बुधसंग मरकाम कहते हैं की मुझे चरण दास महंत, महेंद्र कर्मा और अरविंद नेताम ने जबरदस्ती चुनाव लड़वाया. क्या कांग्रेस की हालत छत्तीसगढ़ में इतनी बुरी हो गयी है की अब हमें लोगो को जोर-जबरदस्ती कर के चुनाव लड़वाना पड़ता है?

७३-वर्षीय श्री बुधसंग मरकाम अपनी लम्बी जिंदगी में पहले कभी चुनाव नहीं लड़े, इसलिए उनका चुनाव नहीं लड़ने की बात वाजिब लगती है. पिछले पंचायती चुनावों में उनका लड़का, ओम प्रकाश माला, उनके गाँव, ओडेंगा, से सरपंच का चुनाव जरूर लड़ा था, मगर हार गया. इस बार खुद श्री मरकाम अपने गाँव से भी जीत नहीं पाए. इससे उनकी लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है. यही नहीं, श्री मरकाम आज तक कांग्रेस पार्टी में किसी भी पद पर नहीं रहे हैं, इसलिए स्थानी कार्यकर्ताओं का ये कहना की वे उन्हें पहले से नहीं पहचानते भी वाजिब लगता है. उम्र के कारण वो प्रचार में भी कम निकल पाए, इसलिए अधिकतर कार्यकर्ता आज भी उन्हें ठीक से नहीं जान पाये हैं, और विधायक न बनने के कारण अब शायद जान भी नहीं पायेंगे.

हाँ, जान-पहचान करने का एक मौका आया था. जब जिला मुख्यालय जगदलपुर में पूरे क्षेत्र से आये कार्यकर्ता उनके नामांकन पत्र जमा करने के दिन कांग्रेस भवन में एकत्रित हुए थे. उस दिन वो वहाँ आये ही नहीं. सीधे कर्मा जी के घर से कलेक्टरेट चल दिए, और कार्यकर्ता उनका इंतज़ार ही करते रह गए.

मैं ऐसी बातों को नहीं मानता. श्री बुधसंग मरकाम ने न चाहते हुए भी अपनी पूरी ताकत और क्षमता के अनुसार चुनाव लड़ा. मैंने सुना है की प्रदेश कांग्रेस से उनको अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. पैसे मिलना तो दूर, दो-दो घंटे तक उन्हें डीसल के पैसे के लिए पार्टी कार्यालय में इंतज़ार करना पड़ा. शायद वे भी जान गए थे की बिना मांगे उन्हें टिकेट क्यों दिया गया? इसके केवल दो कारण थे. पहला, पार्टी में ये सन्देश देना की टिकेट अजीत जोगी नहीं, बल्कि चरण दास महंत और महेंद्र कर्मा तय करेंगे. दूसरा, क्यों कि उनसे कमज़ोर प्रत्याशी- जिसका पूर्व में न तो कोई चुनावी अनुभव है और न ही संगठन का, जिसकी उम्र ७३ साल की हो गयी हो, जो खुद अपने गाँव से जीत नहीं सकता है और जिसकी सामजिक संस्था पूरी तरह RSS में विलीन हो रही है- दूसरा और कोई भी नहीं था.

श्री मरकाम को टिकेट मिलने के साथ-साथ ही श्रीमती फूलोदेवी नेताम की टिकट कट गयी (केवल इसलिए क्योंकि मेरे पिता जी उनको अपनी छोटी बहन मानते हैं). श्रीमती नेताम २००५ में चुनाव जीतकर बस्तर जिले की जिला पंचायत अध्यक्षा चुनी गयी हैं. हाल ही में उनके ससुर का देहांत हो गया. ऐसे में उनकी टिकेट काटने से, इस महिला-बाहुल्य क्षेत्र में पार्टी के प्रति, खासकर महिलाओं में, कम संवेदना ही रही होगी.

इन सब के बावजूद भी श्री बुधसंग मरकाम को चुनाव हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी. प्रदेश कांग्रेस कमिटी द्वारा प्रकाशित पोस्टर-पम्फ्लेट में सभी नेताओं के फोटो थे. श्री मोतीलाल वोरा, श्री चरण दास महंत, श्री महेंद्र कर्मा और हाल ही में राकपा, बसपा और भाजपा की परिक्रमा करके पार्टी में लौटे, श्री विद्या चरण शुक्ल और श्री अरविंद नेताम, इन सबका चेहरा नज़र आता है. बस, एक व्यक्ति का फोटो गायब है: मेरे पिता जी, श्री अजीत जोगी का. आखिर क्यों? ऐसा तो नहीं है कि उनकी फोटो लगा देने से चुनाव में उल्टा प्रभाव पड़ता. अगर ऐसा था, तो भला उनको प्रचार करने क्यों बुलाया जाता. यही नहीं, कांग्रेस उन सभी मतदान केन्द्रों में आगे रही है जहाँ मेरे माता-पिता ने प्रचार किया. हवा में मैं नहीं बात करता, चुनावी आंकडे अब सबके सामने हैं.

एक ऐसे व्यक्ति को प्रचार की कमान सौपी गयी जिसकी पत्नी खुद कांकेर के महापौर के चुनाव में अपनी जमानत जप्त करवा चुकी हैं. यही नहीं, प्रदेश के शीर्ष कांग्रेसी नेताओं को उनके दिशा-निर्देश में काम करने का आदेश दिया गया. अगर वे नेता मेरे पिता जी से वास्ता रखते हैं, तो उनको न तो सामग्री दी गयी, और न ही चुनावी खर्चे के लिए पैसा. जैसे इतना काफी नहीं था, इस व्यक्ति ने प्रचार अभियान के बीच बेबुनियाद आरोप लगा दिया कि पूर्व विधायक, स्वर्गीय महेश बघेल, की हत्या इलाके के साहूकारों और मारवाड़ियों ने करी. इस आरोप को वो सिद्ध तो कर नहीं पाए, पर इतना जरूर सुनिश्चित कर दिया कि क्षेत्र के गैर-आदिवासी वोट कांग्रेस को न मिले.

चुनाव प्रचार के आखिरी दिन, नेता प्रतिपक्ष और सलवा जुडूम के करता-धरता, श्री महेंद्र कर्मा, धनोरा के नक्सिली प्रभावित इलाकों में प्रचार करने अचानक पहुंच गए. वहाँ ऐलान कर आये की चुनाव बुधसंग मरकाम नहीं, मैं लड़ रहा हूँ. बस इतना कहना काफी था. सलवा जुडूम के चलते हजारों की संख्या में बेघर हुए आदिवासिओं को तय करने में देर नहीं लगी, कि भाजपा और जुडूम, दोनों में कौन कम बुरा है. नतीजा, नक्सिली इलाकों में भाजपा को एक-तरफा वोट पड़े। बची-कुची कसर उन्होनें ये कहके पूरी कर दी कि बुधसंग मरकाम आदमी नहीं, क्षाशात बड़ा देव है. ये बात आदिवासियों, जिनके सबसे बड़े देवता बड़ा देव हैं, को पची नहीं.

हाँ, चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष, दोनों ने फट से बोल दिया की नक्सिली इलाकों में भारी मतदान के चलते, सरकार द्वारा प्रशासन का दुरूपयोग किया गया. अगर ये बात सच भी है, तो सभी नक्सिली प्रभावित मतदान केन्द्रों में भाजपा को मात्र ४१०० मतों की लीड मिली है; बाकी, गैर-प्रभावित इलाकों में जो १६००० से ज्यादा की हार हुई है, उसका क्या कारण है?

भाजपा अगर यह मानती है कि तीन रूपए किलो चावल के कारण उसकी जीत हुई है, तो ये बात पूरी तरह गलत है. हकीकत तो ये है कि केशकाल में रमन राज की जीत नहीं हुई है, कांग्रेस संगठन की हार हुई है.

हाल-फिलहाल ही श्री चरण दास महंत के अंतरंग सहयोगी और बाल-सखा कहीं पर बोल रहे थे, कि जोगी से बहतर तो रमन है; आखिर काम हमारे कौन से बंद हैं. ऐसे में कांग्रेस का भविष्य छत्तीसगढ़ में कैसा होगा, ये सोचकर भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. हाँ, इतना जरूर है कि अगर दुबारा कहीं भाजपा यहाँ सत्ता में आ गयी, तो फिर हमारी स्थिति उत्तर प्रदेश और बिहार से ज्यादा अलग नहीं होगी।

अमित
February 9, 2008

4 comments (टिप्पणी):

Atul said...

Bhaiya nice to see this post back.
I was very much disturbed after reading the concerned article in newspaper. After that, I had mailed you the reasons for it. As I wasnt able to talk to you.
With its comeback, I am bit relaxed now.
Hope this violation of Intellectual Property Rights and the rules set by you in the blog.
Regards,
Atul

Remmish Gupta said...

By welcoming the re-entry of the post, I seek apology for re-posting my comments as well which I had written in favor of your post.

"केशकाल में पार्टी की हार का कारण ना तो ३ रु. किलो चावल है और ना ही भाजपाइयों द्वारा स्व-घोषित विकास! इसका एकमात्र कारण जो मुझे समझ में आता है, वह है- छत्तीसगढ़ के एकमात्र सर्वमान्य नेता एवं बेहतर राजनीतिज्ञ माननीय 'श्री अजीत जोगीजी' की अनदेखी करना। केशकाल में जो हुआ वह नि:संदेह निराशाजनक है। अगर यही हाल रहा तो मुझे नही लगता कि अगले विधानसभा चुनावों में हमें किसी बडे बदलाव कि आशा रखनी चाहिऐ। जो नेता खुद चुनाव नही जीत सकते वे 'मुख्यमंत्री' बनने का ख्वाब देख रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस कमिटी द्वारा प्रकाशित पोस्टर-पम्फ्लेट में माननीय जोगीजी का फोटो ना होना हमारे कांग्रेसी नेताओं की विचलित मानसिकता को दर्शाता है। केशकाल की जनता द्वारा भाजपा को जीत दिलाना यह दर्शाता है कि कांग्रेसी बडे नेता जो अभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं, वो माननीय श्री जोगीजी को दौड़ से बाहर रखने के लिए किस हद तक नीचे जा सकते हैं। केशकाल में कांग्रेस पार्टी की हार भाजपा कि जीत नहीं बल्कि कांग्रेसी सोच, संगठन और नेतृत्व कर रहे बडे नेताओं कि हार है। एक ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने को कहना (वह भी जबरदस्ती) जो खुद अपने ग्राम से चुनाव नही जीत सकता, क्या हमारे नेताओं कि गिरी हुई मानसिकता को नही दर्शाता है? क्या हमारे नेताओं का यह कर्तव्य नही बनता कि उस सर्वमान्य व्यक्ति को नेतृत्व सौंपें जो नेतृत्व करने कि क्षमता रखता हो और जिसे हमारी छत्तीसगढ़ कि जनता चाहती हो, ना कि ऐसे व्यक्ति को जो खुद अपने क्षेत्र में भी चुनाव जीतने के काबिल ना हो?

सिर्फ अपने ३ साल के कार्यकाल में ही जिस व्यक्ति ने हमें आगे बढ़ने का एक रास्ता दिखाया और जिसने हमें यह सिखाया कि कम से कम स्रोतों में किस तरह तरक्की कि जाती है, जिस व्यक्ति कि सोच ही कुछ निराली है, जो सोचता है कि अपनी जनता और अपने राज्य के लिए कुछ करूं, जो यह चाहता है कि अपने राज्य का हर नागरिक चैन से रहते हुए उन्नति के सपने देखते हुए प्रगति की राह पर चले, जिसका सपना है कि अपने राज्य का हर विद्यार्थी अपने राज्य में ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा ग्रहण करे, जिसका मानना है कि अपने राज्य का हर किसान खुशहाल ज़िंदगी जीते हुए प्रगति करे, जो यह कहता है कि हमारा राज्य पूरे देश में हर क्षेत्र में अग्रणी हो, जो एक सपना देखता है एक विकसित राज्य का, जो सोचता है कि औद्योगीकरण की नीति अपनाकर राज्य में विकास की एक धारा बहाई जाये, जिसकी सोच में एक सपना है... क्या हमारा यह कर्तव्य नही बनता कि उस महान सोच वाले राजनीतिज्ञ 'जोगीजी' को एक मौका और दिया जाये जिससे 'हमारा छत्तीसगढ़' उन्नति के शिखर को चूमते हुए एक विकसित राज्य बने???

अब समय आ गया है जब हम अपनी मानसिकता एवं सोच को बड़ा कर और आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर एक नयी राह अपनाएं जो 'हमारे छत्तीसगढ़' राज्य और प्रदेशवासियों के लिए भी लाभदायक हो। अब हमें आपसी मतभेदों को भूलकर सर्वमान्य नेता 'श्री जोगीजी' को नेतृत्व प्रदान करना चाहिऐ जिससे भाजपा जैसी फस्सिस्त ताकतों से हमारे प्रदेशवासियों को निजात मिल सके और हम फिर से एक 'विकसित राज्य' बनने का सपना देख सकें। इसीमें हम सब कि भलाई है!

आशा है, केशकाल उप-चुनाव कि हार से केन्द्र में बैठे हुए हमारे नेतृत्व को इसकी समझ आ चुकी होगी और एक नई सुबह का ख्वाब संजोये, हमारे भोले-भाले प्रदेशवासियों को फिर से 'माननीय श्री जोगीजी' का कुशल नेतृत्व मिल जाएगा!

इन्ही शुभ कामनाओं के साथ,
रेम्मिश गुप्ता"

Unknown said...

Other comments that got removed:

RituRaj:
what you think if this situation continues...congress has any future in coming legislative election?

Rituraj

Rajeev:
Congress lost the election by huge margin because of the selfish motives of Mr. Karma and Mr. Mahant. Neglecting a mass leader like Mr Ajit Jogi is really shameful and people have really shown this. The so called party leaders must put Congress Party first and not their personal hostility. Everybody knows what position Mr Ajit Jogi has in people's heart and he is the person who can do miracles by his speech and hard work. He as the capacity to bring back the glory of Congress in the state and others should realize it immediately.

Dr. Saibel Farishta:
It's Time For 'CHANGE' In Chhattisgarh Congress.

http://dr-saibel-farishta.blogspot.com/2008/02/time-for-leadership-change-in-cg.html

Prabhat:
Dear Amit Ji,

With your article on Cgnet it is now confirmed about the division in the Congress.So how does Congress plan to give a tough fight to the BJP with only few months left for the elections?I say tought fight because the way things are going BJP is sure to come to power again.And if that happens whatever little hope I have for the indigenous people of Chhattisgarh will long be gone.


I remember meeting a Sardarji when your father was the C.M.This Sardarji has more than 100acres of land near Raipur.He was boasting about his political clout but added that he avoides public meetings and parties because he is scared that Ajith Jogi might put his land under "Amod Pamod" and give it to the poors.I am telling this incident because I feel poor use to feel secure under your father but under BJP the trend has changed.Now the likes of Brijmohan Agrawal have even purchased tribal lands in Chhattisgarh.But who is going to expose him since both Congress and BJP work hand in hand.

This is why I agree when you say that both Mahant and Karma are on BJP payroll.May be everybody joined hand to targett you and your father because their business was not flourishing?

Because of my father high school was opened in Narainpur of Bastar District because he was the first one to finish school from this region.We have our family spread almost all over Bastar but today I am scared to even to go my village.Scared not from the naxalites but from the para-military.The reason is that this State Government doesn't want educated people to talk about the plight of the tribals of Bastar.Infact they are going to go to any lenght to hide the filth of Salwa Judum.

Regards,
Prabhat

Anand Xalxo:
Elections Under Ajit Jogiji will ensure victory...
***
This has to be the period of prepration and not time of lessons(from keshkal) if congress would have learnt from its management mistakes.
Keshkal had to be last stamp to approval of failure of enactment of right plannings to rejuvinate the party workers. In a matter of fact, now the time has to be to reunite the true face of parties progress, i.e. the youth of all the class and educational level to generate back the confidence that the synonym of progress and development has to be congress.
For the scenario prevailing now, what a common public thinks is that the ambitions and real theme behind the formation of our state seems lost and the road to development nowhere in sight, the absence of strong and active opposition shows leadersip and administrative void.
The congress in true means exists today due to original and dedicating leaders in party and now opportunist and non-popular leaders seem active to fool around to put last nail on existence of congress in chhattisgarh.
I heard few colleagues say to be better to scream as elephant when hands unable to clap to be heard.
So combine scenario indicates that Shri Ajit jogiji should be given complete charge of the elections and the responsibility of bringing the principles of congress in the state so that the dream of the people of bringing prosperity to state be made true. Congress should rethink its policy and enters next election scenario under Ajit Jogiji ,to make a come back ,what a tribal state of Chhattisgarh today needs.

Sanjeet Tripathi:
बढ़िया विश्लेषण!
यह बात सही कही जा सकती है कि केशकाल में रमन-राज की जीत नही बल्कि कांग्रेस संगठन की हार हुई है!

आदिवासी इलाकों में जोगीजी का प्रभाव जितना है उतना अन्य किसी कांग्रेसी नेता का शायद ही हो।फिर भी अगर पार्टी उनका सही उपयोग नही कर पाई यह कांग्रेस की गलती ही है।

मयंपाट से आपके एक कांग्रेसी के नशे मे फोन करने की बात से एक बात का उल्लेख करना चाहूंगा। प्रचार के लिए केशकाल और अन्य इलाकों में रायपुर से गए बहुत से युवक कांग्रेसियों से अक्सर फोन पर चर्चा होते रही और आप यकीन नही करेंगे, दिन-दहाड़े यह कार्यकर्ता नशे मे डूबे होते थे और कहते रहे कि बस भाई साहब हम जीत गए समझो। मुझे आश्चर्य होता रहा कि जब प्रचार के दौरान दिन दहाड़े ये नशे में डूबे हैं तो प्रचार क्या कर रहे होंगे और किस जीत का दावा ये कर रहे हैं।
दूसरी बात जो मैं पहले भी कहता आया हूं मिस उनियाल से ऑनलाईन चर्चा के दौरान कि छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस में से भाजपा इसलिए प्लस में चली जाती है अक्सर क्योंकि पिछले बीस सालों से उनके आनुषांगिक संगठन जमीनी स्तर पर भाजपा को बढ़ाने में बहुत काम कर रहे हैं जबकि कांग्रेस के आनुषांगिक संगठन उतना बेहतर काम नही कर पा रहे या उनसे ऐसा काम नही लिया जा रहा। बतौर उदाहरण कांग्रेस सेवादल का ही हाल ले लीजिए, कांग्रेस सेवादल का काम अब सिर्फ़ दरी बिछाना उठाना या आयोजन की तैयारी करना व सलामी देना ही हो गया है।

मेरे एक चचेरे भाई गांव में हैं और सेवादल प्रमुख हैं सालों से, उनसे चर्चा होते रहती है अक्सर, कई प्रमाणपत्र और बेस्ट कार्यकर्ता का तमगा लगाए रहते हैं लेकिन सेवादल के ऐसे उपयोग पर रोते रहते हैं।

जैसा कि आप जानते ही होंगे मेरे स्वर्गीय पिता आज़ादी तक कांग्रेस के ही सदस्य रहे लेकिन फ़िर उन्होने सदस्यता छोड़ दी उनसे भी कई बार चर्चाएं होती थी उन्हें भी अफसोस होता था कि कांग्रेस का आमजन से जुड़ाव सिर्फ़ आमसभा या चुनाव के दौरान दिखता है।

पर मुझे लगता है कि ओवरऑल यह सब प्रभावित करता ही है जनमानस को!
मुख्य बात है जनता से जुड़ाव-आमजन से जुड़ाव।

Sanjeet Tripathi-2:
और हां शहर कांग्रेस कमेटी के ये मनोज कन्दोई साहब क्या कह रहें है एक नज़र डालिए

केशकाल चुनाव-विश्लेषण अपने अपने

KN Nayak:
Hi amit read ur blog... It seems congress is in its lowest esteem aftr dis election.. I hv been a fan of congress, nw its feels sad at dìs sorry state. Hope Jogi sir will make things right.

Rajeev Sahu:
Amitji! thnx a lot for concern. Really nice to see ur words. I have
already posted my comments on ur blog. Plz do check it. But as usual, U
have really done a wonderful job Amitji. U have given an insider's view
on the landslide defeat of Congress in the By-polls and I agree with u
that if things r not going to change soon then winning in any election
will be a nightmare for the party.

Anonymous:
Priy amit,
Tumhara blog read kiya. Sach kahoon to achchhi analysis hai par ek sawaal hai mere man me ki kya aise analysis Delhi me baithe Highkamaan bhi kabhi karte hain ?

Chhattisgarh Congress me Aatm manthan ki jarurat yun to bahut pahle se hi rahi hai. Tajaa halaat me jab Keshkaal election buri tarah se haar chuke tab to iske liye Highkamaan ko apni aankhe khol leni chahiye…

yahi halaat rahe to to meri najar me aane wale kuchh saal congress ke liye bahut bure jaane wale hain naa keval na keval Chhattisgarh me balki pure bharatvarsh me. Pure bharat me congress ki durgati hone lagi is iska sidha kaaran jamini star me hold rakhne wale leaders ko importance nahin dena. Example ke liye aap Gujraat ke halaat le sakte hain wahan congress ki leadership ek aise leader ke haath me hai jo khud hi BJP me rahe the kabhi. MP me bhi aap dekhe to leader aisa nahin hai jiski jamin me pakad ho, aap Haryana and UP me bhi iski tasveer dekh sakte hain. Jahan tak aaj jo buri haalat congress ki hai uska bhi sidha sidha reason bhi yahi hai ki Yahaan congress ki taraf se common people chaahe ho urban reason ho ya rural, sabse jyada hold rakhne wale leader Shrri Ajit Jogi ji ko congress ki baagdor nahin dena. Aaj ya to swayam bhi ek Election nahin jeet sakte ya kisi ko jeeta nahin sakte aise logo ko congress ki leadership di gayi hai. Leader to wo hona chahiye ki jiski ek aawaj se saare political volunteers and common people sadak pe aa jaayen…par yahan to agar wo kisi mudde pe call kare to ulte log us programme se distance maintain karne lagte hain… anyways… rahi baat Keshkaal election ki to bahut si baaten hain,, waise to mostly UP CHUNAV existing government wali party hi jitati hai but agar opposition perfect candidate nominate kare and leadership sahi leader ko diye jaayen to result apne favour me laya ja sakta hai.. jaise li Chhattisgarh me KOTA and RAJNANDGAON election me dekha ja chukka hai…. Highkaman ke aaspass ke log mujhe lagta hai swayam hi congress ka bhala nahin chahte hain aur highkamaan ko sahi sari suggestion and information nahin dete hain.. par ab swayam highkamaan ko saare states me jaake common volunteers and voters se puchhana chaiye ki aap yahan kiski leadership chaahte hain…..par sach kahoon to ab bhi highkamaan ki eyes open ho jaayen iski mujhe ummeed kam hai…. Anyways…ek baar bhi mauka mila hai congress ki top leadership ko Chhattishgarh ke haalata aake khud hi dekhe, kyun ki BJP govt aane ke baad se unaka yahan aana nahin hua…so she should plan to visit here so she can know and understand the situation of congres sin Chhattisgarh. Rahi baat JOGI ji to everybody knows that he is the ONLY LEADER of Congress in Chhattisgarh who has gravity and hold to provide the better leadership in the state………. Rahi baat Keshkaal election ke result ki to.. sach baat to ye hain ki Congress ne wrong candidate ko nominate kiya, leadership absolutely wrong person ke hands me the, khana purti ke liye eletion ka prachar kiya gaya chaahe wo delhi ke congress leader ho ya state ke. Aur agar leadership ab na badla to aane wale saal Congress ko aur gart me le jaane wale hain..

Faisala swayam ab Highkamaan ke haath me hain….Chaaplus Neta chaiye ya result oriented leaders who has impressive hold in the community……

Girish Kabir

Prof. Saibel Farishta said...

Time For CHANGE In Chhattisgarh Congress Leadership II

The continuing defeat of Congress party in Chhattisgarh [this time in the Keshkal bye-election], has opened a Pandora's box within the Congress.

The first and foremost finger-pointing will have to be done at the CG PCC President CD Mahant. Mr Mahant doesn't have a fan following anywhere in Chhattisgarh, is always surrounded by rich & tainted Congress businessmen and lacks the desire of Winning any election - as was clearly visible during the Keshkal bye-election, when CDM and other members of his 'defunct Congress organization' - made Makdi Dhaba in Kanker [famous for delicious Kheer] as their election control room on the Keshkal polling day. Congress had also lost the Khairagarh & Malkharoda bye-elections in Chhattisgarh recently, under CDM's able leadership.

The second finger has to be raised on the elderly Mr ML Vora, who unfortunately also has a 'zero-base' in Chhattisgarh. If Mr Vora is not nominated in Rajya Sabha and is made to fight an election, 'his truth' would be exposed. Mr Vora is usually absent from the state for months and seems to become active & appear only during ticket distribution, nominations and elections. It won't be an exaggeration to say that - Such type of 'aboriginal politicians' have eaten-up the Congress Party like turmites and have made their organization Hollow. Mr Vora never has a public viewpoint and solely survives on his loyalty for his party's leadership, like most of other Congress Politicians. It is also worth mentioning that Mr Vora's childish son had also lost his assembly seat in the last state election from Durg [the only place from where he could have fought infact].

The third finger has to be pointed at Bastar's own Mahendra Karma, who is often suspected of having a 'secret pact' with the Chhattisgarh's BJP CM. The ill fated Salwa Judum of 'BJP and Karma' has already run into rough weathers, with insecurity creeping in, firstly within the tribals who are lodged into Salwa Judum camps, secondly, within the poorly trained village SPO's, who are forcibly asked to fight the Naxalites, standing in front and lastly within the demoralized Chhattisgarh Police Force. The average tribal population, for whom all this is supposedly to be done, seems to be stuck, in between all of this chaos and is not aligned with anyone.

Coming back to the 'Expected & Happy Keshkal result', it can now be said that the low-lying - Leadership issue within the CG Congress has flared-up once again. The 'Jogi Faction' is believed to be going 'full throttle' in Delhi, on it's genuine demand for having a leadership change in CG Congress. How much time do 'Mahant & Karma duo' have, has become a matter of intense speculation. Everything now depends on the all-powerfull ''MADAM''.

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