Thursday, March 28, 2013

अपनी तकदीर के मालिक बनो, छत्तीसगढ़!

मेरे पिछले लेख से अब तक एक साल बीत चुका है। न लिख पाने के कारण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं।


पिछले ढाई सालों में मैंने लगातार दौरे किये हैं: लगभग दो हज़ार किलोमीटर की पदयात्राएं करी और दो लाख किलोमीटर से भी ज्यादा का दौरा गाड़ी से किया। इस दौरान चार हज़ार से भी ज्यादा छोटी-बड़ी जन सभाओं को संबोधित किया। छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले व ब्लाक मुख्यालयों में कम से कम दो सौ बार गिरफ्तार हुआ, अश्रु-गैस और पानी की बौछारें छोड़ी गयी, लाठी चार्ज किया गया।

इन सब के ऊपर, १५ महीनों से मेरे साथ वैवाहिक बंधन में बंधी मेरी जीवन-संगिनी ऋचा को न केवल मेरी लगातार अनुपस्तिथि का सामना करना पड़ा है वरन जो सीमित मौकों पर मैं उनके साथ रहता हूँ, उन मौकों पर भी वैवाहिक जीवन के लिए जरुरी व्यक्तिगत समय में लगातार होती घुसपैठ से भी जूझना पड़ा है। ऋचा ने मेरी विवशता को समझते हुए अभी तक हर समय मुझे अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया है। मेरी नज़र में यह समतापमंडलीय सहिष्णुता ही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है जो वाकई काबिलेतारीफ है। ऋचा के द्वारा मुझे मिलने वाले निरंतर सहयोग के लिए मैं उनका दिल से आभारी हूँ। मैं स्वयं को बहुत ही भाग्यशाली समझता हूँ एवं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि मुझे ऋचा के रूप में ऐसी अद्भुत, जिम्मेदार और विनम्र स्वभाव वाली सर्व-गुण संपन्न पत्नी मिली है।

राजनीति, मेरी नज़र में, व्यक्तियों पर केन्द्रित न होकर मुद्दों पर केन्द्रित होनी चाहिए- विशेषकर ऐसे मुद्दे जिनका सीधा-सीधा  असर जनता पर पड़ता है।  जैसे राज्य सरकार का:
i . शक्तिशाली औद्योगिक दल्गोष्टों के दबाव में आकर लोगों को अपने घरों से बेदखल कर देना;
ii . लोगों के जीवन के अधिकार की रक्षा करने में नाकाम होना- यहाँ मै निम्नलिखित तीन अधिकारों की बात कर रहा हूँ: 
अ. स्वयं की प्राण रक्षा का अधिकार;  
ब. दूसरे के द्वारा स्वयं का लगातार बलात्कार न होने का अधिकार;  
स. जहरीली हवा व पानी से स्वयं की मौत न होने का अधिकार;
iii. जनता को मूर्ख समझकर उनके साथ बार - बार विश्वासघात करना;
iv. ढिठाई से अवैध वसूली में लग जाना और राजकीय कोष को लूट लेना;
v. पूर्वजों द्वारा चिरकाल से सावधानीपूर्वक  सहेज कर रखी गयी  प्रदेश की भूमि और उसकी प्राकृतिक सम्पदा को बाहर वालों को कम दामों में बेच देना;
vi. जिन चीज़ों पर कोई शुल्क न होना चाहिए ऐसी चीज़ों पर यहाँ के रहवासियों को उनके वास्तविक मूल्य से भी ज्यादा की वसूली करना;
vii. जानबूझकर लोगों को अपनी पत्नी और परिवार को प्रताड़ित करने वाले शराबी में तब्दील कर देना।

मेरी नज़र में ये 'अस्तित्वात्मक मुद्दे' इस बात से कहीं ज्यादा महत्व रखते हैं की कौनसा व्यक्ति किस ओहदे पर बैठता है। 
मेरा मानना है कि यदि मैं छत्तीसगढ़ की जनता, विशेषकर इसके युवाओं, में ऐसी जागरूकता ला सकूँ जिससे वे अपने प्रारब्ध को हासिल करने के लिए उठ सकें, तो मैं समझूंगा की मेरी राजनीति अपने लक्ष्य में सफल रही।

(मैं अतुल सिंघानिया का इस अनुवाद के लिए आभारी हूँ।)

अमित ऐश्वर्य जोगी
२७ मार्च २०१३
नई दिल्ली 
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Wednesday, March 27, 2013

Carpe Diem, Chhattisgarh!


It’s been a year since my last post. The reasons are obvious.

During the last 2½ years, I’ve been travelling relentlessly, by foot (almost 2000 kilometers) and by car (more than 200,000 kilometers). I’ve addressed more than 4000 public meetings, both large and small. I’ve been arrested, tear-gassed, water-cannoned and baton-charged at least 200 times in every district and block headquarters of Chhattisgarh.

And to top it all, Richa, my poor wife of fifteen months- whose greatest attribute, according to me, has been her stratospheric tolerance- has not only had to put up with my constant absences but also the increasing invasions of our fast-shrinking marital space on the rare occasions that I’m around.

Politics, for me, isn’t so much about persons as it is about issues. In particular, those issues that affect citizens most directly: like when the state uproots them from their homes and hearths at the behest of powerful industrial lobbies; when it fails to protect their right to life- their right not to get killed, their right not to get raped repeatedly, their right not to die of poisonous air and water; when it time and again betrays their faith, taking them for fools; when it brazenly turns into an extortionist and a robber of the state-exchequer; when it under-sells to outsiders the land and its untold natural wealth, which their ancestors had so carefully preserved for them since time immemorial; when it over-charges them for things they shouldn’t have to pay for at all; when it willfully tries to turn an entire people into a generation of wife-beating drunks. To me, these ‘existential issues’ are infinitely more important than who occupies what position.

If I can, in some small way, contribute to an Awakening whereby the people of Chhattisgarh, especially its Youth, rise up to take charge of their destinies, I think my politics would have served its purpose.

Amit Aishwarya Jogi
March 27, 2013

  
          
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