Wednesday, January 29, 2020
Friday, April 05, 2019
A VIEW FROM THE STANDS
Sunday, January 11, 2015
Goa 2015
Thursday, March 28, 2013
अपनी तकदीर के मालिक बनो, छत्तीसगढ़!
मेरे पिछले लेख से अब तक एक साल बीत चुका है। न लिख पाने के कारण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं।
पिछले ढाई सालों में मैंने लगातार दौरे किये हैं: लगभग दो हज़ार किलोमीटर की पदयात्राएं करी और दो लाख किलोमीटर से भी ज्यादा का दौरा गाड़ी से किया। इस दौरान चार हज़ार से भी ज्यादा छोटी-बड़ी जन सभाओं को संबोधित किया। छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले व ब्लाक मुख्यालयों में कम से कम दो सौ बार गिरफ्तार हुआ, अश्रु-गैस और पानी की बौछारें छोड़ी गयी, लाठी चार्ज किया गया।
इन सब के ऊपर, १५ महीनों से मेरे साथ वैवाहिक बंधन में बंधी मेरी जीवन-संगिनी ऋचा को न केवल मेरी लगातार अनुपस्तिथि का सामना करना पड़ा है वरन जो सीमित मौकों पर मैं उनके साथ रहता हूँ, उन मौकों पर भी वैवाहिक जीवन के लिए जरुरी व्यक्तिगत समय में लगातार होती घुसपैठ से भी जूझना पड़ा है। ऋचा ने मेरी विवशता को समझते हुए अभी तक हर समय मुझे अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया है। मेरी नज़र में यह समतापमंडलीय सहिष्णुता ही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है जो वाकई काबिलेतारीफ है। ऋचा के द्वारा मुझे मिलने वाले निरंतर सहयोग के लिए मैं उनका दिल से आभारी हूँ। मैं स्वयं को बहुत ही भाग्यशाली समझता हूँ एवं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि मुझे ऋचा के रूप में ऐसी अद्भुत, जिम्मेदार और विनम्र स्वभाव वाली सर्व-गुण संपन्न पत्नी मिली है।
राजनीति, मेरी नज़र में, व्यक्तियों पर केन्द्रित न होकर मुद्दों पर केन्द्रित होनी चाहिए- विशेषकर ऐसे मुद्दे जिनका सीधा-सीधा असर जनता पर पड़ता है। जैसे राज्य सरकार का:
i . शक्तिशाली औद्योगिक दल्गोष्टों के दबाव में आकर लोगों को अपने घरों से बेदखल कर देना;
ii . लोगों के जीवन के अधिकार की रक्षा करने में नाकाम होना- यहाँ मै निम्नलिखित तीन अधिकारों की बात कर रहा हूँ:
अ. स्वयं की प्राण रक्षा का अधिकार;
ब. दूसरे के द्वारा स्वयं का लगातार बलात्कार न होने का अधिकार;
स. जहरीली हवा व पानी से स्वयं की मौत न होने का अधिकार;
iii. जनता को मूर्ख समझकर उनके साथ बार - बार विश्वासघात करना;
iv. ढिठाई से अवैध वसूली में लग जाना और राजकीय कोष को लूट लेना;
v. पूर्वजों द्वारा चिरकाल से सावधानीपूर्वक सहेज कर रखी गयी प्रदेश की भूमि और उसकी प्राकृतिक सम्पदा को बाहर वालों को कम दामों में बेच देना;
vi. जिन चीज़ों पर कोई शुल्क न होना चाहिए ऐसी चीज़ों पर यहाँ के रहवासियों को उनके वास्तविक मूल्य से भी ज्यादा की वसूली करना;
vii. जानबूझकर लोगों को अपनी पत्नी और परिवार को प्रताड़ित करने वाले शराबी में तब्दील कर देना।
मेरी नज़र में ये 'अस्तित्वात्मक मुद्दे' इस बात से कहीं ज्यादा महत्व रखते हैं की कौनसा व्यक्ति किस ओहदे पर बैठता है।
मेरा मानना है कि यदि मैं छत्तीसगढ़ की जनता, विशेषकर इसके युवाओं, में ऐसी जागरूकता ला सकूँ जिससे वे अपने प्रारब्ध को हासिल करने के लिए उठ सकें, तो मैं समझूंगा की मेरी राजनीति अपने लक्ष्य में सफल रही।
(मैं अतुल सिंघानिया का इस अनुवाद के लिए आभारी हूँ।)
अमित ऐश्वर्य जोगी
२७ मार्च २०१३
नई दिल्ली
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Wednesday, March 27, 2013
Carpe Diem, Chhattisgarh!
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Monday, April 16, 2012
युवा कांग्रेस और NSUI में चुनाव: बदलाव बेहतर होगा
i. चुनाव अपनी ही पार्टी के लोगों में आपसी वैमनस्यता बढ़ा कर कटुता पैदा करते हैं.ii. जीते हुए प्रत्याशी को किसी को भी पुरस्कृत या दण्डित करने का कोई अधिकार नहीं होता. इस वजह से उनकी कोई नहीं सुनता. सर्वोच्च अधिकार मुख्य रूप से नियुक्त की गयी केन्द्रीय कमिटी के पास होता है.iii. चुनाव चयनित पदाधिकारियों के मन में महत्वाकांक्षाएं बढ़ा देते हैं: उन्हें ऐसा लगने लगता है कि चुनाव जीत जाने से उन्हें आम चुनाव में पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ने का अधिकार मिल जाता है. ये महान महत्वाकांक्षाएं बहुत ही कम पूरी होती हैं.
i. केंद्रीय कमिटी जो सबसे ऊपर रहती है उसके भी चुनाव करवाए जाएँ.ii. राज्य से लेकर पंचायत स्तर तक हर जगह चुने हुए कमिटी के मुखिया को यह अधिकार दिए जाएँ कि वे अपने साथ काम करने वाले सदस्यों की नियुक्ति कर सकें और उन्हें अनुशाशन में रख सकें. मुखिया को यह बुनियादी अधिकार दिए बिना अनुशासनहीनता की समस्या जस की तस बनी रहेगी. कमिटी के अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने हिसाब से कम से कम पांच सचिवों की नियुक्ति कर सके (बशर्ते वे कुछ तय किये गए मापदंडों में खरे उतरते हो) और कमिटी के बाकी चुने हुए सदस्यों पर अध्यक्ष जरुरत पड़ने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सके (जो कि एक खुली प्रक्रिया के तहत हो और जिसमे सदस्य के पास अपील का अधिकार हो).
i. पहले विधानसभा कमिटियों के लिए सीधे चुनाव होते थे, उसे बदल कर पंचायतों और वार्डों के डेलीगेट को अपना विधानसभा अध्यक्ष चुनने का अधिकार दिया गया (जिससे कि युवा कांग्रेस सदस्यता अभियान ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच सके).ii. पहले पंचायत स्तर के डेलीगेट विधानसभा और लोकसभा कमिटी चुनते थे, और यह कमिटियाँ फिर राज्य की कमिटी चुनती थी (चरणबद्ध तरीके से मतदान). इसे बदल कर एक ही चरण में मतदाताओं द्वारा एक साथ विधान सभा, लोक सभा और राज्य की कमिटियों की चुनाव प्रक्रिया निर्धारित करी गयी. ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि डेलीगेट की खरीद फरोक्त को जहाँ तक संभव हो रोका जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिस प्रत्याशी का सबसे ज्यादा प्रभाव और संजाल है वह चुनाव जीते.iii. सबसे ताजे बदलाव में पंचायतों और वार्डों की जगह मतदान बूथों को मूलभूत निर्वाचक इकाई बनाया गया है (जिससे कि संगठनात्मक चुनावों को आम चुनाव की पद्धति पर लाया जा सके और बेहतर बूथ स्तर का प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके).
Posted by (इस पोस्ट के लेखक हैं ) Unknown at (समय) 4:52 pm 3 comments (टिप्पणी)
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Friday, April 13, 2012
On Elections in Youth Congress and NSUI: Change Will Do Us Good
Posted by (इस पोस्ट के लेखक हैं ) Unknown at (समय) 4:02 am 4 comments (टिप्पणी)
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